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( प्रचंड धारा )

झारखंड स्थित बाबा धाम देवघर में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक शंकर भगवान स्वयंभू विराजित है, देश-विदेश से लोग वर्ष भर पहुंचते रहते हैं, श्रावण मास में लाखों भक्तों का तांता लगा रहता है, प्रतिदिन एक लाख से ऊपर भक्तों का जल एक दिन में चढ़ता है, देश का एक अद्भुत श्रावणी मेला यहां संपन्न होता है,

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गत महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देवघर में नया एयरपोर्ट का शुभारंभ कर भक्तों को एक और सौगात दी है, स्वयं प्रधानमंत्री भी वहां दर्शन करने पहुंचते रहते हैं, देवघर का पौराणिक इतिहास है वेद पुराणों में इसका वर्णन मिलता है भक्त जनों का कहना है कि बाबा से जो भी मन्नत किया जाता है वह जल्द ही पूर्ण फल देने वाला होता है, इसी कारण से राजनेताओं का भी यहां हमेशा तांता लगा रहता है

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अभनपुर नगर से नगर पंचायत के उपाध्यक्ष किशन शर्मा, सांसद प्रतिनिधि दिलीप अग्रवाल एवं भाजपा नेता संतोष शुक्ला ने अभी बाबा धाम जाकर स्वयंभू ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा बैजनाथ का दर्शन किए हैं,

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा

वेद और पुराणो के अनुसार इस ज्योतिर्लिंग का संबंध रावण से है , रावण भगवान शिव का परम भक्त था। एक बार वह भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर कठोर तपस्या कर रहा था। उसने एक-एक करके अपने 9 सिरों को काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिया। जब वह अपना 10 वां सिर काट करके चढ़ाने जा रहा था, तभी शिव जी प्रकट हो गए। शिव जी ने प्रसन्नता जाहिर करते हुए रावण से वर मांगने के लिए कहा।

रावण चाहता था कि भगवान शिव उसके साथ लंका चलकर रहें, इसीलिए उसने वरदान में कामना लिंग को मांगा। भगवान शिव मनोकामना पूरी करने की बात मान गए, परंतु उन्होंने एक शर्त भी रख दी। उन्होंने कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को कहीं रास्ते में रख दिया, तो तुम उसे दोबारा उठा नहीं पाओगे। शिव जी की इस बात को सुनकर सभी देवी-देवता चिंतित हो गए। सभी इस समस्या को दूर करने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंच गए।

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भगवान विष्णु ने इस समस्या के समाधान के लिए एक लीला रची। उन्होंने वरुण देव को आचमन करने रावण के पेट में जाने का आदेश दिया। इस वजह से रावण को देवघर के पास लघुशंका लग गई। रावण को समझ नहीं आया क्या करे, तभी उसे बैजू नाम का ग्वाला दिखाई दिया। रावण ने बैजू को शिवलिंग पकड़ाकर लघुशंका करने चला गया।

वरुण देव की वजह से रावण कई घंटों तक लघुशंका करता रहा। बैजू रूप में भगवान विष्णु ने मौके का फायदा उठाते हुए शिवलिंग वहीं रख दिया। वह शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया। इस वजह से इस जगह का नाम बैजनाथ धाम पड़ गया। हालांकि इसे रावणेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है।