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( प्रचंड धारा ) दिल्ली… प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भारत में विलुप्त हो चुके जंगली चीतों को आज कुनो नेशनल पार्क में छोड़ा। नामीबिया से लाए गए इन चीतों को भारत में ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत पेश किया जा रहा है, जो दुनिया की पहली, बड़े जंगली मांसाहारी जीव की अंतर-महाद्वीपीय स्थानांतरण परियोजना है।

प्रधानमंत्री ने कुनो नेशनल पार्क में दो रिलीज पॉइंट्स पर चीतों को छोड़ा। प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम स्थल पर चीता मित्रों, चीता पुनर्वास प्रबंधन समूह और छात्रों के साथ भी बातचीत की। इस ऐतिहासिक अवसर पर प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित किया।

राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने उन चंद मौकों पर प्रकाश डालते हुए आभार व्यक्त किया, जो मौके मानवता को अपना अतीत सुधारने और एक नया भविष्य निर्मित करने का मौका देते हैं। श्री मोदी ने कहा कि ऐसा ही एक पल आज हमारे सामने है। उन्होंने कहा, “दशकों पहले जैव विविधता की सदियों पुरानी कड़ी जो टूट कर विलुप्त हो गई थी, आज हमारे पास उसे बहाल करने का मौका है। आज चीता भारत की धरती पर लौट आया है।” प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि इस यादगार अवसर ने भारत की प्रकृति-प्रेमी चेतना को पूरी ताकत से जगाया है।

श्री मोदी ने इस ऐतिहासिक अवसर पर सभी देशवासियों को बधाई दी, और नामीबिया व वहां की सरकार का विशेष उल्लेख किया जिनके सहयोग से दशकों बाद चीते भारत की धरती पर लौटे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, “मुझे विश्वास है कि ये चीते न केवल हमें प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से अवगत कराएंगे बल्कि हमें अपने मानवीय मूल्यों और परंपराओं से भी अवगत कराएंगे।”

आजादी का अमृतकाल पर ध्यान देते हुए प्रधानमंत्री ने ‘पांच प्रणों’ को याद किया और ‘अपनी विरासत पर गर्व करने’ और ‘गुलामी की मानसिकता से मुक्ति’ के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री ने कहा, “जब हम अपनी जड़ों से दूर होते हैं तो हम बहुत कुछ खो देते हैं।” उन्होंने आगे याद किया कि बीती शताब्दियों में प्रकृति के शोषण को शक्ति और आधुनिकता का प्रतीक माना जाता था। उन्होंने कहा, “1947 में जब देश में सिर्फ तीन आखिरी चीते बचे थे, तब भी साल के जंगलों में बड़ी बेरहमी से और गैर-जिम्मेदाराना तरीके से उनका शिकार किया गया।”

प्रधानमंत्री ने टिप्पणी की कि भले ही 1952 में चीते भारत से विलुप्त हो गए थे लेकिन गुज़रे सात दशकों से उनके पुनर्वास के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किया गया था। 

 प्रधानमंत्री ने खुशी व्यक्त की कि आजादी का अमृत महोत्सव में, देश ने नई ऊर्जा के साथ चीतों का पुनर्वास करना शुरू कर दिया है। श्री मोदी ने कहा, “अमृत में मृत को भी जीवित कर देने की शक्ति है।” प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव में कर्तव्य और विश्वास का ये अमृत न केवल हमारी विरासत को पुनर्जीवित कर रहा है, बल्कि अब चीतों ने भी भारत की धरती पर कदम रखा है।

कुनो नेशनल पार्क में प्रधानमंत्री द्वारा जंगली चीतों को छोड़ा जाना भारत के वन्य जीवन और आवासों को पुनर्जीवित करने और उनमें विविधता लाने के उनके प्रयासों का हिस्सा है। चीते को 1952 में भारत से विलुप्त घोषित कर दिया गया था। जिन चीतों को छोड़ा जा रहा है वे नामीबिया के हैं और उन्हें इस साल की शुरुआत में हस्ताक्षर किए गए एक समझौता ज्ञापन के तहत लाया गया है। भारत में चीतों की वापसी ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत की जा रही है जो दुनिया की पहली, बड़े जंगली मांसाहारी जीव की अंतर-महाद्वीपीय स्थानांतरण परियोजना है।

ये चीते भारत में खुले जंगलों और घास के मैदानों के इकोसिस्टम को बहाल करने में मदद करेंगे। ये जैव विविधता के संरक्षण में मदद करेंगे और जल सुरक्षा, कार्बन पृथक्करण व मिट्टी की नमी के संरक्षण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं को बढ़ाने में मदद करेंगे,जिससे बड़े पैमाने पर समाज को लाभ होगा। ये प्रयास पर्यावरण संरक्षण और वन्यजीव संरक्षण के प्रति प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता के अनुरूप है और ये इको-डिवेलपमेंट और इको-टूरिज्म गतिविधियों के माध्यम से स्थानीय समुदाय के लिए आजीविका के अवसरों में बढ़ोतरी करेगा।

Source : PIB

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